Alankar Kise Kahate Hain? – जानिए अलंकार किसे कहते हैं परिभाषा और उदाहरण सहित

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आज इस पोस्ट में Alankar Kise Kahate Hain के बारे में जानेंगे और सीखेंगे की अलंकार को कैसे पहचाना जा सकता हैं? साथ ही साथ अलंकार कितने होते है, परिभाषा और उदाहरण सहित जानेंगे।

Table of Contents

Alankar Kise Kahate Hain? (अलंकार किसे कहते हैं ?)

काव्य की शोभा बढ़ाने वाले गुणों-धर्मों को अलंकार कहते हैं।

सरल भाषा में अलंकार का मतलब होता हैं – गहना या आभूषण। जिस तरह महिलाएं अपने सौंदर्य को खूबसूरत बनाने के लिए अलग-अलग आभूषण का इस्तेमाल करती है उसी तरह कवि भी अपनी काव्यों को सूंदर बनाने के लिए अलंकारों का प्रयोग करते हैं।

Alankar Meaning In Hindi (अलंकार का अर्थ क्या हैं ?)

अलंकार शब्द  ‘अलम‘ और ‘कार’ शब्दों के मिलाप से बना हैं। जिसमे अलम का मतलब होता है -भूषित करना, सजना, सूंदर बनाना। यानि अलंकृत करनेवाला साधन ही अलंकार कहलाता हैं।

अलंकार के कितने भेद हैं ?

शब्द और अर्थ के आधार पर अलंकार को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा गया हैं। काव्य को सूंदर बनाने के लिए शब्द और अर्थ दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं। इस आधार पर अलंकार के मुख्यत दो भेद होते हैं –

(क) अर्थालंकार

(ख़) शब्दालंकार

अर्थालंकारशब्दालंकार
कभी अर्थ विशेष के प्रयोग से काव्य की सुंदरता में बढ़ोतरी होती हैं।कभी शब्द विशेष के प्रयोग से काव्य की सुंदरता में बढ़ोतरी होती हैं।

आइये अब एक-एक कर अर्थालंकार और शब्दालंकार को जानते हैं।

शब्दालंकार (Shabda Alankar) किसे कहते है परिभाषा, भेद और उदाहरण

जब काव्य में किसी विशेष शब्द के इस्तेमाल से उसमे चमत्कार उतपन्न होता है, यानि उस काव्य में सौंदर्य की बढ़ोतरी होती हैं। तब वहाँ शब्दालंकार होता हैं।

शब्दालंकार के भेद 

शब्दालंकार को मुख्यता तीन भेद हैं –

  1. अनुप्रास अलंकार
  2. यमक अलंकार
  3. श्लेष अलंकार

अनुप्रास अलंकार (Anupras Alankar) किसे कहते हैं ? 

जब काव्य में किसी वर्ण के आवृति एक से अधिक बार होती है, तब अनुप्रास अलंकार होता हैं जैसे :-

चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही है, जल थल में। 

इस काव्य में ‘च’ वर्ण की आवृति बार-बार हुई है अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार हैं।

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण 

  • बंदउँ गुरुपद पदुम पराग। सुरुचि सुवास सरस अनुराग।
  • मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत बुलाए।
  • कल कानन कुंडल मोरपंखा उर पै बनमाल बिराजित हैं।
  • तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
  • कालिंदी कूल कदंब की डारन।
  • रघुपति राघव राजा राम। पतित पावन सीताराम।
  • विमल वाणी ने विणा ली कमल कोमल कर के सप्रीत।
  • सुरभित सूंदर सुखद सुमन तुझ पर लिखते हैं।
  • मैया मैं नहिं माखन खायो।
  • सठ सुधरहिं सत संगति पाई। पारस परस कुधातु सुहाई।

यमक अलंकार (Yamak Alankar) किसे कहते हैं ?

जब काव्य में एक ही शब्द दो बार आता है और दोनों के अर्थ अलग-अलग हो तब वहाँ यमक अलंकार होता है जैसे :-

कनन-कनन ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय, 
या खाए बौराए नर, वा पाए बौराए।

इस दोहे की प्रथम पंक्ति में ‘कनन’ शब्द दो बार आया है, परन्तु दोनों के अर्थ अलग-अलग है। एक कनन का अर्थ धतूरा और दूसरे कनन का अर्थ सोना हैं। अतः यहाँ यमक अलंकार हैं।

यमक अलंकार के उदाहरण 

(क)

कहै कवि बेनी, बेनी व्याल की चुराई लीन्ही, 
रति-रति शोभा सब रति के शरीर की।

यहाँ ‘बेनी’ के दो अर्थ – एक कवि एवं दूसरा बालो की चोटी तथा ‘रति’ के दो अर्थ – एक तनिक-तनिक, थोड़ी-थोड़ी और दूसरा कामदेव की पत्नी हैं।

(ख़)

नगन जड़ाती थी वे नगन जड़ाती हैं।

यहाँ ‘नगन’ के दो अर्थ हैं – पहला बिना वस्त्रों के और दूसरा हिरा-पन्ना जवाहरात आदि नग।

(ग)

तो पै वारौ उर्वशी, सुन उर्वशी सुजान। 
तू मोहन के उर्वशी हवै उर्वशी समान।

यहाँ ‘उर्वशी’ के दो अर्थ है – एक अप्सरा और दूसरा ह्रदय में बसी हुई।

(घ)

काली घटा का घमंड घटा नभ तारक मंडल वृंद लिखे।

यहाँ ‘घटा’ शब्द के दो अर्थ हैं – पहला काले बदलो का झुंड और दूसरा कम हो जाना।

श्लेष अलंकार ( Shlesh Alankar) किसे कहते हैं ?

जब काव्य में कोई शब्द एक ही बार आता है, परन्तु उसके एक से अधिक अर्थ होते हैं तब वह श्लेष अलंकार होता हैं; जैसे –

चरन धरत चिंता करत, चितवत चारों ओर। 
सुबरन को खोजत फिरत, कवि व्यभिचारी चोर

यहाँ ‘सुबरन’ शब्द का एक बार प्रयोग हुआ हैं, परन्तु उसके एक से अधिक अर्थ प्रकट हो रहे हैं –

सुबरन :- सूंदर वर्ण या अक्षर – कवि के संबंध में।

सुबरन :- सूंदर रूप-रंग – व्यभिचारी के संबंध में।

सुबरन :- स्वर्ण या सोना – चोर के संबंध में।

अतः उपर्युक्त काव्य पक्तियों में श्लेष अलंकार हैं।

श्लेष अलंकार के उदाहरण 

(क)

मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोय। 
जा तन की झाई पड़े श्याम हरित दुति होय।।

यहाँ ‘हरित’ शब्द का एक बार प्रयोग हुआ हैं, परन्तु उसके एक से अधिक अर्थ प्रकट हो रहे हैं –

हरित – हर्षित (प्रसन्न), हर लेना, हरे रंग का होना

(ख़)

नर की अरु नल नीर की, गति एके कर जोय। 
जे तो निचो हवे चलै, ते ते ऊंचौ होय।

यहाँ ‘निचो’ और ‘ऊंचौ’ शब्द का एक बार प्रयोग हुआ हैं, परन्तु उसके एक से अधिक अर्थ प्रकट हो रहे हैं –

निचो – नीचे की ओर, नम्र, विनीत

ऊंचौ – ऊपर के ओर, सम्मानित

(ग)

जो रहीम गति दीप की कुल कपूत गति सोय। 
बारे उजियारो करै, बढ़ै अंधरों होय।

यहाँ ‘बारे’ और ‘बढ़ै’ शब्द का एक बार प्रयोग हुआ हैं, परन्तु उसके एक से अधिक अर्थ प्रकट हो रहे हैं –

बारे शब्द के अर्थ हैं – बचपन में, जलाने पर

बढ़ै शब्द के अर्थ है – बढ़ने पर, बुझने पर

अर्थालंकार (Artha Alankar) किसे कहते है परिभाषा, भेद और उदाहरण

जब किसी काव्य में अर्थ के माध्यम से सौंदर्य में बढ़ोतरी होती हैं अथवा चमत्कार उतपन्न होता हैं, तब अर्थालंकार होता हैं।

अर्थालंकार के भेद 

अर्थालंकार के कुल पाँच भेद है जैसे –

  1. उपमा अलंकार
  2. रूपक अलंकार
  3. उत्प्रेक्षा अलंकार
  4. अतिश्योक्ति अलंकार
  5. मानवीकरण अलंकार

उपमा अलंकार (Upma Alankar) किसे कहते हैं ?

जब किसी वस्तु या व्यक्ति की तुलना अत्यंत समानता के कारण किसी अन्य प्रसिद्ध वस्तु या व्यक्ति से की जाती हैं तब वहाँ उपमा अलंकार होता है जैसे –

सीता का मुख चन्द्रमा के समान सूंदर है।

उपमा अलंकार के कितने भेद हैं ?

उपमा अलंकार के चार भेद होते हैं जैसे –

  • उपमेय
  • उपमान
  • वाचक शब्द
  • साधारण धर्म

उपमेय :-  जिस प्रस्तुत वस्तु की समानता की जाती हैं, उसे उपमेय कहाँ जाता हैं। जैसे

सीता का मुख चन्द्रमा के समान सूंदर है।

यहाँ ‘सीता’ के मुख की समानता की जा रही है। अतः सीता का मुख उपमेय हैं।

उपमान  :- प्रस्तुत वस्तु उपमेय की तुलना जिस अप्रस्तुत वस्तु से की जाती हैं, उसे उपमान कहते हैं, जैसे –

सीता का मुख चंद्र के समान सूंदर है।

यहाँ प्रस्तुत वस्तु ‘सीता’ के मुख की तुलना अप्रस्तुत वस्तु चंद्र से की गई हैं। अतः चंद्र उपमान हैं।

वाचक शब्द :- उपमेय की उपमान से तुलना करने के लिए जिन तुलनात्मक शब्दों का प्रयोग किया जाता हैं, उन्हें वाचक शब्द कहते है जैसे –

सीता का मुख चन्द्रमा के समान सूंदर है।

यहाँ तुलनात्मक शब्द समान हैं, अतः समान वाचक शब्द है।

साधारण धर्म :- उपमेय और उपमान की समानता जिस शब्द से बताई जाती है, उसे साधरण धर्म कहते है; जैसे –

सीता का मुख चन्द्रमा के समान सूंदर है।

इसमें सुंदर साधरण धर्म हैं।

उपमा अलंकार के उदाहरण 

(क)

'पीपर-पात सरिस मन डोला'

उपमेय :- मन

उपमान :- पीपर-पात

वाचक शब्द :- सरिस

साधारण धर्म :- डोला

(ख़)

मुख बाल रवि-सम लाल होकर ज्वाल-सा बोधित हुआ।

उपमेय :- मुख

उपमान :- बाल रवि-सम

वाचक शब्द :- सा

साधारण धर्म :- बोधित हुआ

(ग)

यह देखिए अरविन्द-से शिशुवृंद कैसे सो रहा।

उपमेय :-  शिशुवृंद

उपमान :- अरविन्द

वाचक शब्द :- से

साधारण धर्म :- नहीं हैं।

उपमा अलंकार की पहचान क्या हैं ?

जहाँ वाचक शब्द सा, सी, से, सम, सदृश, समान, ज्यों शब्द आए वहाँ उपमा अलंकार होता हैं।

उपमा अलंकार के अन्य उदाहरण 

  • हरि पद कोमल-से। (हरि के चरणों की तुलना कमल से की गई हैं।)
  • हाय! फूल-सी कोमल बच्ची हुई राख की ढेरी थी। (बच्ची की तुलना फूल से की गई हैं।)
  • कबिरा माया मोहनी जैसे मीठी खाड़। (माया की तुलना मीठी खाड़ से की गई हैं।)
  • तब तो बहता समय शिला-सा थम जायेगा। (समय की तुलना शिला से)
  • गंगा तेरा नीर अमृत सम उत्तम। (गंगा की पानी की तुलना अमृत से की गई हैं।)
  • पीपर पात सरिस मन डोला। (यहाँ चंचल मन की तुलना पीपल के पत्ते से की गई हैं।)

रूपक अलंकार (Rupak Alankar) किसे कहते हैं ?

जब गुण की अत्यधिक समानता के कारण उपमेय में उपमान का अभेद आरोप कर दिया जाता हैं तब रूपक अलंकार होता हैं। जैसे :-

मैया मैं तो चंद्र-खिलौना लैहों। (हे माँ! मै चन्द्रमा रूपी खिलौना लूंगा)

यहाँ चन्द्रमा (उपमेय) में खिलौना (उपमान) का आरोप होने से रूपक अलंकार हैं।

रूपक अलंकार के उदाहरण 

(क)

राम नाम मणि-दीप धरु जीह देहरी दवार। 
एक राम धनश्याम हित चातक तुलसीदास।।

यहाँ ‘मणि’ उपमेय पर ‘दीप’ उपमान का आरोप होने से रूपक अलंकार हैं

(ख़)

चरण कमल बंदौ हरि राइ।

यहाँ ‘चरण’ उपमेय पर ‘कमल’ उपमान का आरोप होने से रूपक अलंकार हैं।

(ग)

माया दीपक नर पतंग भ्र्मी-भ्र्मी ईवै पड़त।

यहाँ ‘माया’ उपमेय पर ‘दीपक’ उपमान का तथा ‘नर’ उपमेय पर ‘पतंग’ उपमान का आरोप होने से रूपक अलंकार हैं।

(घ)

अंबर पनघट में डूबो रही तारा-घट ऊषा नगरी। 

यहाँ ‘अंबर’ पर ‘कुएँ’ (पनघट) का, ‘तारों’ पर ‘घड़े’ का तथा ‘ऊषा’ पर ‘नगरी’ का आरोप होने से रूपक अलंकार हैं।

उत्प्रेक्षा अलंकार (Utpreksha Alankar) किसे कहते हैं ?

जहाँ प्रस्तुत (उपमेय) पर अप्रस्तुत (उपमान) का भेद रूप आरोप होता हैं, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता हैं।

मतलब उपमेय और उपमान की गुण, धर्म की समानता के कारण समान होने की संभावना कर ली जाती है या उपमेय को उपमान जैसा मान लिया जाता हैं। जैसे

सोहत ओढ़े पीत-पट स्याम सलौने गात। 
मनहुँ नीलमणि सैल पर आतप परयौ प्रभात।।

यहाँ श्रीकृष्ण के सूंदर श्याम में नीलमणि पर्वत की और उनके शरीर पर लिपटे हुए पीतांबर में प्रभात की धूप की मनोरम संभावना की कल्पना की गई हैं। इसमें वाचक शब्द ‘मनहुँ’ हैं। अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार हैं।

उत्प्रेक्षा अलंकार की पहचान 

उत्प्रेक्षा अलंकार में वाचक शब्द मानों, मनहुँ, जानो, जनहुँ, ज्यों, जैसे आदि का प्रयोग होता हैं।

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण  

(क)

नील परिधान बीच सुकुमार, खुल रहा मुर्दल अधखुला अंग। 
खिलो जो ज्यों बजली का फूल, मेघवन बीच गुलाबी रंग।।

यहाँ सतरूपा के नीले परिधान में अधखुले अंगों (उपमेय) में मेघ में चमकती बिजली के फूल (उपमान) की संभावना व्यक्त की गई हैं। ज्यों वाचक शब्द है।

(ख़)

देखन नगर भूप सूत आए। समाचार पुरवासिन्ह पाए। 
धाए काम धाम सब त्यागी। मनहुँ रंक निधि लूटन लगी।।

यह उपमेय श्रीराम और लक्षुमण के सौंदर्यो में निधि (खजाने) से संभावना व्यक्त की गई हैं। ‘मनहुँ’ वाचक शब्द है।

(ग)

उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा। 
मनो हवा के बेग से सोता हुआ सागर जगा।।

यहाँ अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार सुन क्रोधित अर्जुन (उपमेय) में सागर के वद्वेलित होने (उपमान) की संभावना वयक्त की गई है। ‘मानों’ वाचक हैं।

अतिश्योक्ति अलंकार (Atishyokti Alankar) किसे कहते हैं ?

जहाँ पर किसी बात को इतना बढ़ा-चढ़ाकर कहा जाए की जिसका होना सामान्य और असामान्य स्थितियो में संभव न हो, वहाँ अतिश्योक्ति अलंकार होता हैं। जैसे

हनुमान की पुंछ में, लग न पाई आग। 
सारी लंका जल गई, गए निशाचर भाग।।

यहाँ हनुमान की पुंछ में अभी आग लगी भी नहीं पाए थे कि उससे पहले ही लंका का जल जाना दिखाया गया हैं। अतः यहाँ अतिश्योक्ति अलंकार हैं।

अतिश्योक्ति अलंकार के उदाहरण  

(क)

देखि सुदामा की दीन-दशा करुणा करके करुणानिधि रोए। 
पानी परात को हाथ छूओं नहीं नैनन के जल सौ पग धोए।।

यहाँ आखो से अनपेक्षित आँसुओ को अविरल धरा के रूप में प्रस्तुत किया हैं। जिसके कारण सुदामा के पैर धोने के लिए अन्य जल की आवश्यकता नहीं पड़ती। अतः यहाँ अतिश्योक्ति अलंकार हैं।

(ख़)

आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार। 
राणा ने सोचा इस पार, तब तक घोड़ा था उस पार।।

यहाँ रास्ते में आई नदी कैसे पार की जाए यह राणा प्रताप सोच ही रहे थे। कि तब तक चेचक नदी पार हो गया, जो सच्चाई से परे लगता हैं। अतः अतिश्योक्ति अलंकार हैं।

मानवीकरण अलंकार (Manvikaran Alankar) किसे कहते हैं ?

जहाँ जड़ पदार्थो पर मानवीय भावनाओ का आरोप होता हैं, वहां मानवीकरण अलंकार होता हैं। अर्थात जड़ वस्तु या प्रकृति को जीवंत मानव की तरह कार्य करते हुए दिखाया गया हैं। जो मानवीकरण अलंकार होता हैं जैसे –

दिवसावसान का समय 
मेघमय  आसमान से उत्तर रही है। 
वह संध्या सुंदरी परी-सी 
धीरे-धीरे-धीरे।।

यहाँ संध्या को परी के रूप में प्रस्तुत करने के मानवीकरण अलंकार हैं।

मानवीकरण अलंकार के उदाहरण  

(क)

बीती विभावरी जाग री,
अंबर पनघट में डुबो रहीं 
तारा-घट ऊषा नगरी।।

यहाँ ऊषा को नायिका के रूप में प्रस्तुत करने से मानवीकरण अलंकार हैं।

(ख़)

है वसुंधरा बिखेर देती, मोती सबके सोने पर। 
रवि बटोर लेता हैं उनको सदा सवेरा होने पर।

यहाँ वसुंधरा और  सूर्य को मानवीय क्रियाए करते हुए दिखाया गया हैं अतः यह मानवीकरण अलंकार हैं।

(ग)

इस सोते संसार बीच,
जगकर, सजकर रजनी बाले।

यहाँ रजनी (रात) को मानवीय क्रियाए करते हुए दिखाया गया हैं, अतः मानवीकरण अलंकार हैं।

यमक और श्लेष अलंकार में अंतर 

यमक अलंकार श्लेष अलंकार 
यमक अलंकार में एक शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त होता हैं और उनके अर्थ अलग-अलग होते है।श्लेष अलंकार में प्रयुक्त किसी एक शब्द के अर्थ एक से अधिक होते हैं।
कनक-कनक ते सौ गुनीमंगन को देखि पट देत बार-बार
यहाँ ‘कनक’ का अर्थ है – धतूरा और दूसरे कनक का अर्थ हैं – सोना।यहाँ प्रयुक्त ‘पट’ एक ही शब्द के दो अर्थ है – वस्त्र और कपाट।

उपमा और रूपक अलंकार में अंतर 

उपमा अलंकार रूपक अलंकार 
उपमा अलंकार में उपमेय और उपमान में किसी वाचक शब्द से समानता दिखाई जाती हैं।रूपक अलंकार में उपमेय और उपमान में अभेद रूप आरोप होता हैं। इसमें वाचक शब्द का प्रयोग नहीं होता हैं।
पीपर पात सरिस मन डोला।चरण-कमल बंदौ हरि आई।

रूपक और उत्प्रेक्षा अलंकारों में अंतर 

रूपक अलंकार उत्प्रेक्षा अलंकार 
रूपका अलंकार में उपमेय और उपमान में अभेद रूप आरोप होता हैं।उत्प्रेक्षा अलंकार में उपमेय और उपमान में भेद रूप आरोप होता हैं। इसमें आरोप करने के लिए उपमेय, उपमान जैसा प्रतीत होता हैं।
चरण कमल सुशोभित हो रहे हैं।चरण मानो कमल है।

20+ अलंकार के उदाहरण

काव्य अलंकार
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली।मानवीकरण अलंकार
कर का मनका डारि दे मन का मनका फेर।यमक अलंकार
आए महंत वसंत।रूपक अलंकार
शस्त्रबहु सम सो रिपु मोरा।अनुप्रास अलंकार
तीन बेर खाती थी वे तीन बेर खाती हैं।यमक अलंकार
हिकमणो से पूर्ण मनो हो गए पंकज नए।उत्प्रेक्षा अलंकार
जा तन की झाई परे श्याम हरित दुति होय।श्लेष अलंकार
चरण-कमल बंदौ हरि आई।रूपक अलंकार
सुनत जोग लागत है ऐसो, ज्यों करुई ककड़ी।उपमा अलंकार
है बसुंदरा बिखेर देती, मोती सबके सोने पर।मानवीकरण अलंकार
मेघ आए बन-ठन के, सवाँर के।मानवीकरण अलंकार
मनहुँ नीलमणि सैल पर, आतप परयौ प्रभात।उत्प्रेक्षा अलंकार
मुख बाल रवि-सम लाल होकर ज्वाल-सा बोधित हुआ।उपमा अलंकार
काली घटा का घमंड घटा।यमक लंकार
बारे उजियारो करे बढे अंधेरों होय।श्लेष अलंकार
कंकन किंकनी नूपुर धुनि सुनि।अनुप्रास अलंकार
आरसी से अंबर में आभा-सी उजारी लागै।उपमा अलंकार
पीपर पात सरिस मन डोला।उत्प्रेक्ष अलंकार
सिर फट गया उसका वही मनो अरुण रंग का घड़ा।उत्प्रेक्ष अलंकार
सुरभित सूंदर सुखद सुमन तुझ पर झरते हैं।अनुप्रास अलंकार
बरसत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकाश।अनुप्रास अलंकार
कहे कवि बेनी, व्याल की चुराई लीन्ही।यमक अलंकार
मधुबन की छाती को देखो, सुखी इसकी कितनी कलियाँ।श्लेष अलंकार

Alankar (अलंकार) : FAQ 

प्रश्न:- अलंकार क्या हैं ?

उत्तर:- काव्य की शोभा बढ़ाने वाले गुणों-धर्मों को अलंकार कहते हैं।

प्रश्न:- अलंकार के कितने भेद हैं ?

उत्तर:- अलंकार के दो भेद हैं – अर्थालंकार और शब्दालंकार

प्रश्न:- अर्था अलंकार के कितने भेद हैं ?

उत्तर:-  अर्था अलंकार के कुल पाँच भेद हैं –

  1. उपमा अलंकार
  2. रूपक अलंकार
  3. उत्प्रेक्षा अलंकार
  4. अतिश्योक्ति अलंकार
  5. मानवीकरण अलंकार

प्रश्न:- शब्दा अलंकार के कितने भेद हैं ?

उत्तर:- शब्दा अलंकार के कुल तीन भेद हैं –

  1. अनुप्रास अलंकार
  2. यमक अलंकार
  3. श्लेष अलंकार

प्रश्न:- उत्प्रेक्षा अलंकार की पहचान क्या होती हैं ?

उत्तर:- उत्प्रेक्षा अलंकार में वाचक शब्द मानों, मनहुँ, जानो, जनहुँ, ज्यों, जैसे आदि का प्रयोग होता हैं।

प्रश्न:- उपमा अलंकार की पहचान क्या हैं ?

उत्तर:- जहाँ वाचक शब्द सा, सी, से, सम, सदृश, समान, ज्यों शब्द आए वहाँ उपमा अलंकार होता हैं।

प्रश्न:- उपमा अलंकार का एक उदाहरण

उत्तर:- वह दीपशिखा-सी शांत भाव में लीन।

प्रश्न:- रूपक अलंकार का एक उदाहरण

उत्तर:- मैया मै तो चंद्र खिलौना लैहों।

प्रश्न:- आगे-आगे नाचती गति बयार चली में कौनसा अलंकार हैं ?

उत्तर:- मानवीकरण अलंकार।

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